baba kalpnesh patriotic geet | वतन पूँछे दुखी होकर अखंडित कब बनाओगे/बाबा कल्पनेश
baba kalpnesh patriotic geet-वतन पूँछे दुखी होकर अखंडित कब बनाओगे/बाबा कल्पनेश
वतन पूँछे दुखी होकर अखंडित कब बनाओगे
रचे जो कीर्ति की माला उसी की कीर्ति होती है।
उसी की कीर्ति गायन से मनुजता प्रीति बोती है।।
कभी यह विश्व लेकर के हमीं से गीत गाता था।
वही निज अंक में भर कर धरा अधुना सँजोती है।।
सनातन से अखंडित है यहीं के प्रेम की धारा।
यहीं से तड़तड़ातड़ टूटती है मनुज की कारा।।
हमारा ज्ञान लेकर के रचे सद्ग्रंथ दुनिया ने।
यहीं से धर्म का उद्भव जगत ये जानता सारा।।
भगत-आजाद जो भोगे उसे क्या भूल जाना है।
अभी आतंक सीमा पर बढ़ा उसको मिटाना है।।
प्रभाती में खड़े सब साथ हो जय हिंद बोलो रे।
धरा यह बोल बोले है तुम्हे यह गीत गाना है।।
यहाँ का गीत यह अनुपम लिखोगे कब सुनाओगे।
गए जो दूर हमसे हैं उन्हें कब साथ लाओगे।।
लगा जो दाग दामन पर परिश्रम से उसे धोना।
वतन पूँछे दुखी होकर अखंडित कब बनाओगे।
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