kitna akela hoon main-कितना अकेला हूँ मैं/शैलेन्द्र कुमार
kitna akela hoon main-कितना अकेला हूँ मैं/शैलेन्द्र कुमार
कितना अकेला हूँ मैं
नींद नहीं आती मौत भी नहीं आती,
कितना अकेला हूँ मैं।
आँखें हैं खोई-खोई रात भी ढलती नहीं,
कितना अकेला हूँ मैं।
रोने को जी चाहता है आँसू भी साथ छोड़ गए,
कितना अकेला हूँ मैं।
सब सो रहे सुख की नींद इतनी रात जाऊँ कहाँ,
कितना अकेला हूँ मैं।
उसने तो दिल तोड़ दिया परिवार भी याद करता नहीं,
कितना अकेला हूँ मैं।
मुझको कितना देती विश्राम खुद रो रही चारपाई मेरी,
कितना अकेला हूँ मैं।
करवट बदलता रहा सारी रात,
कितना अकेला हूँ मैं।
कोई नहीं समझाने वाला मेरी समझ में कुछ आता नहीं,
कितना अकेला हूँ मैं।
लोगों को मिल जाते हैं कितने साथी यहाँ एक भी साथी साथ निभाता नहीं,
कितना अकेला हूँ मैं।
ज्वर भी आ-आकर चला गया बीमारी भी साथ देती नहीं,
कितना अकेला हूँ मैं।
उसने उपेक्षित किया इस कदर एक बार भी नहीं सोचा उसने,
कितना अकेला हूँ मैं।
ईश्वर तो है ही नहीं पृथ्वी पर दोस्त भी बन गया जान का दुश्मन
कितना अकेला हूँ मैं।
शैलेन्द्र कुमार
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