Hindi kavita pahun-पाहुन /बाबा कल्पनेश

पाहुन

(Hindi kavita pahun)


पाहुन आए द्वार पर,ले फागुन दरबार।
बौराए सब आम्र तरु,धारे नव शृंगार।।
धारे नव शृंगार, दिशाएँ महकी-महकी।
डाल-डाल तरु पात,कुहुक कर कोयल चहकी।
लिख-लिख पाहुन गीत,लेखनी कविता गाए।
जगे हमारे भाग्य,द्वार पर पाहुन आए।

सरसों पियरी पहन कर,झूम रही मदमस्त।
शीत काल की वेदना,हुई सकल अब अस्त।।
हुई सकल अब अस्त, एक मस्ती है छाई।
शबरी लेकर बैर,दौड़ करती पहुनाई।।
त्रेता युग की बात, लगे जैसे कल-परसों।
महके सारे खेत,फूल इतराई सरसों।

महुआ सारे कूँच धर,लगे झारने पात।
दूध भरे गेहूँ हरित,हुए प्रफुल्लित गात।।
हुए प्रफुल्लित गात,प्रकृति के दिन बहुरे हैं।
हुई कठिन पहचान,अधिक वय जो लहुरे हैं।
सबमें एक प्रवेश, प्रसन्न दीखे है कहुआ।
मह-मह महके बाग,चुएगा जब तक महुआ।।

Hindi -kavita- pahun
बाबा कल्पनेश

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