barasate baadal हिंदी कविता -अरविंद जायसवाल
बरसते बादल
(barasate baadal)
ताल तलाई हर्षित होकर,
नालों में परिवर्तित होकर,
भाव विभोर प्रफुल्लित होकर,
चले मिलन की आशा लेकर ।(१)
मेघों ने दंदुभी बजाई,
बिजली चमकी राह दिखाई,
दादुर मोर करें यशगान,
वर्षा को देकर सम्मान,
चली हवायें साक्षी बनकर,
नदियों के तट से टकराकर,
ताल तलाई हर्षित होकर ,
नालों में परिवर्तित होकर,
भाव विभोर प्रफुल्लित होकर,
चले मिलन की आशा लेकर।(२)
बूँदें छम छम करके नाची,
महक उठी प्रकृती की माटी,
वन उपवन सब लगे नहाने,
धूल धरा में लगी समाने,
गर्मी के नव उन्मूलन से,
गज करते वंदन चिग्घार,
ताल तलाई हर्षित होकर,
नालों में परिवर्तित होकर,
भाव विभोर प्रफुल्लित होकर,
चले मिलन की आशा लेकर। (३)
खेतों की मेंडें उफनाई,
चला किसान लिए तरुणाई,
फिर माटी को लगा गोडने,
माटी ने भी ली अंगडाई,
उलट पलट कर उसे बनाया,
खुशी हुआ बीजों को बोकर,
ताल तलाई हर्षित होकर,
नालों में परिवर्तित होकर,
भाव बिभोर प्रफुल्लित होकर,
चले मिलन की आशा लेकर। (४)
हुए बीज अंकुरित धरा पर,
हरियाली धरती पर छाई,
नव कल्लों के प्रजनन से,
फसलों में आई तरुणाई,
तब अरविंद बरसते बादल,
हर पल पल मोहित हो कर कर,
ताल तलाई हर्षित होकर,
नालों में परिवर्तित होकर,
भाव विभोर प्रफुल्लित होकर,
चले मिलन की आशा लेकर। (५)


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