hindi desh bhakti kavita/सच्ची स्वतंत्रता ॽ

(hindi desh bhakti kavita)

sachche-swatantrata

सच्ची स्वतंत्रता ॽ

भारत में भारतीय को ,
ढूंढ़ता          रहा       मैं ।
हो  कोई      देश – प्रेमी ,
सूंघता        रहा      मैं ।

जब – जब  भी  दृष्टि घूमी ,
अंग्रेज    ही    दिखे    सब ।
अपने   ही   देश  भारत को
ढूंढ़ता            रहा          मैं ।

भाषा       यहां     विदेशी ,
जलवे       उसी   के  देखें ।
हिन्दी    में   बोलने   पर ,
मासूम     पिटते    देखें ।

हिन्दी    गॅवारू     भाषा ,
अपने   ही   लोग   कहते ।
अपनी    ही    संस्कृति   के ,
अवशेष      मैंने     देखे ।

हुआ    स्वतन्त्र      भारत ,
कैसे    कहूं    मैं    दिल से ॽ
अंग्रेज      आज       भी    हैं ,
कुछ सिर फिरो के दिल में ।

चाहते    नहीं  वो   भारत ,
दुनिया    में    सिर   उठाए ।
आओ- उन्हें     कुचल       दे ,
विष – नाग जिनके दिल में ।

शिक्षा       हुई       बिकाऊ ,
बोली      लगाओ- पढ़ लो ।
बाज़ार      बन    गई        है ,
मन- चाहा जाॅब गढ़ लो । ।

हैं अब कहां वह गुरुकुल ,
जो    शान थे      हमारी ।
थोड़ा     विचार     कर लो ,
सन्देश    उनके    पढ़ लो ।

होंगे   स्वतन्त्र   तब हम ,
जब    भारतीय    बनेंगे ।
हिन्दी   हो   राष्ट्र- भाषा ,
मिल   कर    सभी कहेंगे ।

गुरुकुल समान शिक्षा ,
उज्ज्वल चरित्र भारत ।
सच्ची    स्वतंत्रता हम ,
मिल कर पथिक कहेंगे ।।

sachche-swatantrata

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