ek rooh kee daastaan/सीताराम चौहान पथिक

(ek rooh kee daastaan)

एक रूह की दास्तान ।।


वो    आएंगे   कभी   तो
मेरे  मजार  पे  इक   दिन
गुब्बार         उड़ेगी    मेरी
पैग़ाम सुना जाएगी जिस दिन

वैसे   तो   जिन्दगी   में
गुमसुम   से   रहे वो ,
इतना      यकीन   है
रो देंगे वो उस दिन ।

वो   आए कब्र  पर मेरे
कुछ     फूल   धर गये ।
शम्मा जलाई – धूप दी ,
मोती    बिखर     गए ।

सच मानिए , उस दिन
खुदा मेहरबान हो गया ,
क़तरे     गिरे   जो उनके
मेरे  माजी संवर गये ।

तन्हाइयों     में हर दिन
बस उनका ख्याल था ।
कैसे     जियेंगे  तन्हा ॽ
बस     ये मलाल था ।

देखा जो अपनी कब्र पर
बे- दम    से     वो     लगे ।
आँखो     में   उनके  तैरता
बस   इक    सवाल    था ॽ

शाम- ए- ग़ज़ल है ज़िन्दगी,
किसको    सुनाऊं    मैं ॽ
दिल       पे   गुज़र   रही है
किसको       बताऊं      मैं ॽ

तन्हाइयों    ने    मुझको
शायर     बना       दिया ,
तुम    पास   आओ   मेरे
आंसू    दिखाऊं       में ।

देखी जो उनकी हालत ,
मुझसे     खराब    थी ।
तन्हाइयों   में   उनकी
साकी      शराब      थी ।

मजबूरियां        थी   मेरी
समझा   सकी  ना उनको ।
पथिक – मैं   काश    होती ,
मैं    तो   शबाब     थी ।।

ek- rooh- kee- daastaan
सीताराम चौहान पथिक

  1. रूह – आत्मा 
  2. शम्मा -दिया 
  3. माजी – बीता समय
  4. तन्हाइयों -अकेला पन 
  5. मलाल – दुःख
  6. साकी – शराब देने वाली ,
  7. शबाब -बहुत सुंदर ।

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