Best Ghazal Of Asha Shaili – आशा शैली की चुनिंदा ग़ज़ले
Best Ghazal Of Asha Shaili – आशा शैली की चुनिंदा ग़ज़ले
आशा शैली की चुनिंदा ग़ज़ले
१.
तरबतर हो गया इक अश्क से सहरा कैसे,
इस कदर दर्द का दरया हुआ गहरा कैसे।
बंदिशें दिल के सनमखाने की खुद बाँधी थीं
टूट जाता वो ग़मे-दर्द का पहरा कैसे।
मुझको रास आ न सकी एक मुहब्बत की घड़ी,
मेरे होठों पे तब्बसुम भला ठहरा कैसे।
जिस्मो-जां खाक करे हैफ़ ये रुत सावन की,
जल गया दिल तो हुआ रंग सुनहरा कैसे।
हम से हल हो न सका मरहला मुहब्बत का,
तुम से पल भर में सुलझता है मुअम्मा कैसे।
२.
बात दिल की जहाँ-जहाँ रखिए
एक परदा भी दरम्याँ रखिए।
घोंसले जब बुने हैं काँटों से
क्यों बचाकर हथेलियाँ रखिए।
हौसले अपने आज़माने को
हर कदम साथ आँधियाँ रखिए।
मौसमों से नज़र मिलाने को
सर पे कोई न आसमाँ रखिए।
हर जगह नाम उनका लिक्खा है
फिक्र है दासतां कहाँ रखिए।
माया-ए-ग़म छुपाएँ किस-किस से
कीमती शै को अब कहाँ रखिए।
बात दिल की किसी से तो कहिए
पास बेहतर है राज़दाँ रखिए।
तब जनम लेगी नग़मगी शैली
दिल के जख्मों पे जब ज़ुबां रखिए।
आशा शैली
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