Bal – Sahitya | Pankho Waala Ghoda – पंखो वाला  घोड़ा/ सीताराम चौहान पथिक

Bal – Sahitya | Pankho Waala Ghoda – पंखो वाला  घोड़ा/ सीताराम चौहान पथिक

बाल – साहित्य

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पंखो वाला  घोड़ा

पंखो वाला   घोड़ा ला दे ,
मां , मैं उस पर बैठूंगा ।
दूर- दूर देशों में जाकर ,
नये नगर मैं देखूंगा ।।

नीले रंग का घोड़ा मेरा ,
आसमान   में दौड़ेगा ।
काले पीले नीले बादल ,
सबको पीछे छोड़ेगा ।।

पंखो वाले  घोड़े से मां ,
मैं   अपना घर देखूंगा ।
नीचे से तुम हाथ हिलाना,
मैं   ऊपर   से   देखूंगा ।।

यह मेरा पंखो का घोड़ा ,
इन्द्र-धनुष में दौड़ेगा ।
खूब मज़ा आएगा जब ,
चन्दा- मामा भी दौड़ेगा ।।

मेरा पंखो वाला  घोड़ा ,
सरपट सरपट दौड़ेगा ।
बड़े बड़े पर्वत और सागर ,
बस, चुटकी में लांघेगा  ।।

पंखो वाले  घोड़े पर- मां ,
पीछे गुड़िया बैठी होगी ।
नदियां नाले खेत सरोवर ,
चंदा  वाली डोली होगी ।।

मां, उड़ना-घोडा मंगवा  दो ,
जैसा पुस्तक में देखा है ।
मुझे जन्म-दिवस पर देना ,
ठीक वही- – जैसा देखा है।।

मां , कह एक कहानी

मां , कह एक कहानी ,
नहीं राजा नहीं रानी ।
मुझे सुनाओ वीर शिवा ,
अथवा झाँसी  की रानी ।।
मां कह एक कहानी ।

राम कृष्ण के बचपन या ,
राणा प्रताप के चेतक की ।
मीरा के कॄष्ण- प्रेम अथवा ,
आजाद- हिन्द के सेनानी ।।
मां,      कह     एक   कहानी

नेता    सुभाष   की  आई एन ए ,
गुरु गोविन्द के  साहिबजादो की ।
सुखदेव     भगत    सिंह राजगुरु,
या      सावरकर      की कुर्बानी ।
मां,         कह       एक      कहानी

नहीं सुनाना भ्रष्टाचारी ,
नेताओं की कारगुजारी ।
भारत-माता लज्जित होती,
देख – देख कर कारस्तानी ।।
मां , कह एक कहानी

मुझे सुनाओ लाल बहादुर ,
या पटेल के सच्चे किस्से ।
जागे मुझमें राष्ट्र-भावना ,
सुन संतो की अमॄत- वाणी।।
मां , कह एक कहानी

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सीताराम चौहान पथिक

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