डॉ. ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश का रचना संसार

डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश का रचना संसार

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डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश

एक सज़ल


इसी शहर में कहीं तुम हो कहीं हम भी हैं।
साथ में खुशियों के कुछ छोटे-छोटे गम भी हैं।।
आप कल तक जो रहे वह जहां से दूर गए
म याद में उनकी कोर पलकों के यह नम भी हैं।।
स्पर्श काया का नहीं किंतु हाथ मन है मिले
प्यार करते बहुत मुझसे मेरे सनम भी हैं ।।
आप कहते हो छोड़ो चर्चा उनकी क्या करना
भुलाएं किस तरह है यह मुद्दे अब अहम भी हैं।।
आज जो पा रहे हैं खेल है यह कुदरत का
भाग्य को दोष दे क्यों अपने कुछ करम भी हैं।।
हवा की चाल को क्या नाम दें बदनामी का
करते विश्वास घायल दिल उठे भरम भी हैं।।

सहकर अरे जुल्म भी शैलेश कर रहा

सब कुछ उंगलियां उसको कुछ दिखाते बेरहम भी हैं।।


एक गीत :आ गए तुम


आ गए तुम जग सिमट आया हमारी बाँह में।
भूल से भी अब न भटकेगी कभी जा राह में।।
आ गए तुम……
निराशा ने शिथिल पद को कर दिया था

एक पल आग को कोमल पखुरियों पर रखा वे जाँय जल
कौन कहता है मलिनता
आ गई है चाह में।।
आ गए तुम…..
निमिष भर के लिए सारा
स्वर्ग आगेआ गया
तम तृषा का बंद टूटा हर्ष नूतन छा गया
तप्त तन सुख पा गया है
आज शीतल छाँह में।
आ गए तुम….
भाग्य को अपने सराहें,
या कहें आभार तुमको,
समझ कुछ आता नहीं कैसे समेटूँ प्यार तुमको
है जलन जिनके ह्रदय में मरे अंतर्दाह में।।
आ गए तुम……


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