दे दे रे मॉ,इतना वर दे / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
दे दे रे मॉ,इतना वर दे
दे दे रे मॉ , इतना वर दे,
देश मेरा खुशहाल रहे।
हर हाथों को ,काम सौंप दे,
हर घर मालामाल रहे ।
ना जानूॅ मैं पूजन -अर्चन,
वन्दन के दो गीत नहीं हैं।
अवलम्ब तुम्हारे चरणों का,
कोई सच्चे मीत नहीं हैं।
होंठों पर बस नाम तुम्हारा,
जीवन धन्य निहाल रहे।
दे दे रे मॉ,इतना वर दे,
देश मेरा खुशहाल रहे।1।
भटक गये सब राह में मैया,
डाल दिया विप्लव ने डेरा।
सुखद भोर की आश तुम्हीं से
तूफानों में घिरा बसेरा ।
कर्म-धर्म सब भूल गए अब,
पगड़ी बची उछाल रहे।
दे दे रे मॉ,इतना वर दे,
देश मेरा खुशहाल रहे।2।
शोषण-दमन से मुक्त सभी हों,
सुख-समृद्ध के दीप जला दे।
ऊॅच-नीच के भेद मिटा कर,
बिछुड़े प्यारे मीत मिला दे।
अन्तर्मन के स्वप्न सजाते ,
आनन्दित हर काल रहे।
दे दे रे मॉ, इतना वर दे,
देश मेरा खुशहाल रहे।3।