pushpa-srivastava-shelly-ke-dohe

देख लो आम के बौर को बेटियों | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

देख लो आम के बौर को बेटियों

देख लो आम के बौर को बेटियों,
और पगडंडी की दूब पर बैठ लो।
कूक कोयल की समझो जरा ध्यान से,
आम महुए से बतियाते आराम से।
बांस के झुरमुटों से निहारो सूरज,
सांझ के गीत के ठौर को देख लो।

कच्ची माटी का आंगन बचा है अभी,
चूल्हे की सोंधी -सोंधी महक भी तो है।
ताई के हाथ की रोटियों में बसी,
ताऊ के प्यार की वो खनक भी तो है।
रात भर औटती दूध चूल्हे में वो,
तेरे खातिर ही काकी की लौ देख लो।

देखना वो कुआं अब भी गुलजार है,
जन्म लेता वहां प्यार से प्यार है।
बात घूंघट के नीचे से निकली मगर,
चुपके-चुपके हवा में पतंग बन गई।
बदले सब कुछ हवा की गली में कि तुम
खेत का धन मटर-गेहूं-जौ देख लो।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *