फ्रैक्चर / सम्पूर्णानंद मिश्र

फ्रैक्चर / सम्पूर्णानंद मिश्र

सम्पूर्णानंद मिश्र

जब विश्वास का पैर
फ्रैक्चर होता है
तो नहीं ठीक होता है जल्दी
बहुत समय लगता है
इसको फिर से खड़ा होने में
क्योंकि
जब यह खड़ा होता है
धीमी चाल
चलता है
तो
अविश्वास के गड्ढे
में गिर जाता है
फिर भी विश्वास
अपने ऊपर
विश्वास बनाता है
लेकिन
बारंबार अविश्वास
द्वारा कुचल दिया जाता है
शायद यही विश्वास की नियति है
इसीलिए यह शब्द
न जाने कितने समय से
धक्का खा रहा है
बारंबार
चोटिल हो जाता है
फिर उठता है
और अविश्वास को ललकारता है
नयी-नयी चुनौती देता है
अपने पैरों पर खड़ा होने की संभावना लिए
गंतव्य तक बढ़ता जाता है
शायद विश्वास की यही नियति है
कि
वह बारंबार छला जाता है
और एक बार फिर
अविश्वास के पिंजरे में कैद हो जाता है

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

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