Gaay kee karun pukaar/सीताराम चौहान पथिक

गाय की करुण पुकार

(Gaay kee karun pukaar)

गौ-पालक है देश हमारा ,
ग्वाले    है     बद – हाल ।
गैयां भटक रहीं गलियों में,
सब    से    बड़ा     सवाल ।

गौ-सेवक ग्वाले कहां गए ॽ
पल-पल      रखते थे ख्याल ।
गौ- वत्सल कान्हा इत देखो ,
कैसा    निर्मम कलि काल ।

गौ – शाला कसाई समान ,
संरक्षक     मौज     उड़ाते ।
दूध दोह व्यापार बढ़ाते ,
गैयां    भटकै    बे – हाल ।

कहां छिपे हो कॄष्ण कन्हैया
तुम्हारी     गैयां करै पुकार ।
दुर्गति देखो तनिक हमारी ,
शरणागत      हम गोपाल ।

त्राहि त्राहि – देखो नट नागर ,
हम    कटती बीच बाज़ार ।
कैसे गो- पालक कहलाते हो,
पथिक, हम पूछै यही सवाल

– 2 –

शीघ्र आओ गोपाल कृष्ण ,
हैं गैयां  भटकै इधर उधर ।
केवल झलक दिखा दो कान्हा ,
देख    रहीं      हैं इधर – उधर ।

कितनी यातनाएं नित सहती,
करुण   पुकार को सुनो ज़रा ।
रक्षक      भक्षक     बन बैठे हैं ,
जाएं    कहां बोलो गिरिधर ॽ

अब गोपाल जिये तो कैसे ,
भूखी – प्यासी गलियों में ।
हरित घास के मोह- जाल में
खोज रहीं कचरा घर – घर ।

वृंदावन       के    रास – रचैया ,
कॄष्ण – कन्हैया आओ इधर ।
धेनु   तुम्हारी शरणागत है ,
हमें  थाम लो नट – नागर ।

देखो  तन पर घाव – रुधिर ,
कान्हा निर्मोही बनो न तुम ।
राधा      की      सौगंध तुम्हें ,
गैयन की ले लो खोज खबर

गौ-शाला    वध – शाला समान
अब तुम्हीं कहो हम जाएं कहां  ॽ
कान्हा      हमै शरण में ले लो ,
पथिक – मेरे हे नट- नागर ।

Gaay kee karun pukaar
सीताराम चौहान पथिक

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