हल्का हल्का सुरूर है साक़ी / नरेंद्र सिंह बघेल
हल्का हल्का सुरूर है साक़ी / नरेंद्र सिंह बघेल
( तरन्नुम से गुनगुनाने को}
हल्का हल्का सुरूर है साक़ी ।
कोई चाहत जरूर है साक़ी ।।
हल्का हल्का ———
बिन पिए खुद-ब -खुद बहकतै हैं ।
इक नशा सा जरूर है साक़ी ।।
कोई चाहत जरूर है साक़ी ।
हल्का हल्का ——
चाँद भी उनके दम से फीका लगे।
कैसा उनका गुरूर है साक़ी ।।
कोई चाहत जरूर है साक़ी ।
हल्का हल्का ———
बाअदब हम भी उनको प्यारे लगे ।
ये कहर तो जरूर है साक़ी ।।
कोई चाहत जरूर है साक़ी ।
हल्का हल्का ———
वो तो खंजर छुपाए बैठे हैं ।
ये तो उनका शऊर है साक़ी ।।
कोई चाहत जरूर है साक़ी ।
हल्का हल्का ——–
उनके छुपके याकि खुलके मिलने में ।
एक पर्दा जरूर है साक़ी ।।
कोई चाहत जरूर है साक़ी ।
हल्का हल्का ———
वो गज़ल जिसको गुनगुनाते रहे।
इक असर तो जरूर है साक़ी ।।
कोई चाहत जरूर है साक़ी ।
हल्का हल्का ——-
वो तरन्नुम वो गीत वो गज़लें ।
इक नज़ाकत जरूर है साक़ी ।।
कोई चाहत जरूर है साक़ी ।
हल्का हल्का सुरूर है साक़ी ।।
हल्का हल्का सुरूर है साक़ी ।।
– नरेन्द्र सिंह बघेल