मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूं / श्रवण कुमार पान्डेय,पथिक
गुन्जन अक्षुष्ण जिसका सर्वथा,
मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूं,!
प्रवाह,पावन पवन का ,मुझमें समाया,
कृति समर्थ,रविदाह ने मुझको तपाया,
मुझमें समाहित,नीरवत निर्मल तरलता,
मुझको सुलभ है व्योमवत ,इक क्षत्रता,
जिससे सरस जीव जीवन,
सुहृद मधुर जीवन रागिनी हूँ,!
मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूँ,!!
,,01,,
घाटियों से गिरिसृंग तक,गून्जी सदा मैं,
अविराम जीवन दायिनी बहती हवा मैं,
प्रकृति ने मुझको दिया चिरहास्य अपना,
पंगु को मैं ही दिखाती,गिरि लंघ्य सपना,
लौह को कंचन बनाती जो,
मै वह पावन पारस मणि हूं,!!!
मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूँ,!!
,,02,,
वेदादिकों में,मैं ही गूंजी ऋचा बन,
वांगमय में ,आत्मध्वनि,प्रेरणामय,
सुकवि कंठ मे सस्नेह स्थित सरस्वती हूँ,
प्रकृति के आंचल विहंसती नूतन नटी हूँ,
संसय मुकुरु जो सहज काटे,
तूलिका के अग्र की हीराकनी हूँ,
मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूँ,
,,03,,
श्रवण कुमार पान्डेय,पथिक,