hindi kavita रखती है आबरू/ सम्पूर्णानंद मिश्र
hindi kavita रखती है आबरू
रखती है आबरू
गुज़र रहे हैं माना कि
बहुत बुरे दौर से हम सब
लेकिन न उखड़े
विवेक और धैर्य का खूंटा
भलाई है पूरे देश की इसी में
ख़तरनाक वक्त है ज़रूर
लेकिन निर्मूल प्रश्न कर
थूकता रहे एक दूसरे पर
पक्ष और प्रतिपक्ष
यह ठीक नहीं है
चांद और सूर्य पर का थूक
भिगोता है अपने को ही
लाखों जवाबों को
ख़ामोशी पालती है पेट में
उगलती नहीं है
ना जाने कितने
सवालों की आबरू
लूटने से बचाती है
पेट की बात पेट में रहे
यही समय की मांग है
बुरा दौर ज़रूर है
लेकिन बुरा दौर
कुछ सिखाने ही आता है
भटके हुए को रोशनी
दिखाने आता है
बीत जायेगा
यह गाढ़ा समय भी
कौन रोक पाया है समय को
बस ज़रूरत है
ढाढ़स बंधाने की
नहीं तो
तबाह कर सकती है
असंयमित भाषा की बारूद
और कई ज़िंदगियों को
सम्पूर्णानंद मिश्र
फूलपुर प्रयागराज
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