हिंदी की महत्ता / डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
हिंदी की महत्ता / डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
हिंदी की महत्ता
आदिकाल से हिंदी की अपनी एक महत्ता है।
विभिन्न भाषा- भाषियों के बीच इसकी सत्ता है।।
सूर, कबीर, तुलसी का मान इसने बढ़ाया है।
देव, ठाकुर, बिहारी ने भी इसमें ध्यान लगाया है।
घनानंद, बोधा, आलम की मस्ती इसी में पायी जाती है।
भारतेंदु, द्विवेदी, शुक्ल की गाथा इसी में गायी जाती है।।
जयशंकर, पंत, निराला, महादेवी ने परचम इसका लहराया है।
अज्ञेय, शमशेर, प्रेमचंद का स्मरण भी इसमें आया है ।।
रामचरितमानस का सत्साहित्य इसमें पाया जाता है।
दर्द मीरा का भी इसमें गाया जाता है।।
धूमिल के मोचीराम ने आदमी को जूते की नाप बतलाया है।
और आदमी को आदमी होने की तमीज़ भी सिखलाया है।।
बतौर राष्ट्रभाषा हिन्दी ने अपनी पहचान बनायी है।
सेनानियों को चिर समाधि से इसी ने जगायी है।।
नेपाल, सूरीनाम, फिजी, मारीशस तक हिंदी ने अपनी ध्वजा फहरायी है।
पूरे विश्व के भाल पर सद्भावना की बिंदी भी इसी ने लगायी है।।
विद्वेष की क्यारी में प्रेम का फूल इसने खिलाया है।
साम्प्रदायिकता की धधकती ज्वाला को इसी ने बुझाया है।।
दंभ, छल, कपट, घृणा की होली इसी ने जलायी है।
प्रेम के ढाई आखर की पोथी इसी ने पढ़ाई है।।
राम- सीता के आदर्शों पर चलना इसी ने सिखाया है।
श्वान को मनुष्य होने का प्रशिक्षण भी इसी ने दिलाया है।।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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