बेरोजगारी पर कविता-Hindi Poem Unemployment

बेरोजगारी पर कविता| Hindi Poem Unemployment

बेरोज़गारी की समस्या

बेरोजगारी की समस्या–

इतनी ज्यादा जड़ें जमा चुकी है कि

इसके समक्ष

न जानें कितनी प्रबल आकाँक्षाएँ

और जाने कितने स्वप्न

टूटकर बिखर- बिखर गए।

 

नव पल्लवित मन

जाने कितनी आशाओं और सृजनात्मक क्षमताओं को

साथ ले इससे टकराने की कोशिश करता ही रहा

किन्तु कई वर्ष बीत गए

यह समुद्र में गहरी धँसी चट्टान बन चुकी है

जिसे युवा मन नहीं पा रहा तनिक भी उखाड़।

 

कुछ एक रिक्त पदों हेतु लाखों अभ्यर्थी,

सब एक से बढ़कर एक ‘अनमोल’

किन्तु ‘अपनी प्रतिभा और

रुचि को महत्त्व देकर इतिहास रचने के स्थान पर

महज़ एक नौकरी पाने की चाह से बँधे’

फॉर्म ऑफ़िस से परीक्षा -भवन तक का सफर

उनके लिए

बन गया मानो जल का भँवर

जिससे बाहर निकलकर समय व स्वप्नों के साथ चल पाना

असम्भव सा लगता है ।

 

कुछ भी असम्भव नहीं का सिद्धान्त —–

पीछे -पीछे ,बहुत पीछे छूट गया ।

क्योंकि

जब उनके पास असीम महात्त्वकाँक्षाएँ थीं

तब सब कुछ सम्भव लगता था

किन्तु अब

वो भी घिस चुकी हैं

उनके जूतों की घिसी हुई तली की तरह

शूक्ष्मतर इच्छाएँ भी– असम्भव हो अप्राप्य बन गईं

उन्मुक्त उड़ान भरने वाला मन आज दब गया है

उन कर्त्तव्य के बोझ तले

जिनके निर्वहन में युवा असमर्थ हैं ।

 

दिन-ब- दिन जर्जर होते

बूढ़े पिता के कन्धों को सहारा देने के बजाय

उन पर ही बोझ बने रहने की

ग्लानि से हताश ।

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आरती जायसवाल

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