Holi par kavita-Holi Kavita poem-रंग बरसा
रंग बरसा
(Holi par kavita-Holi Kavita poem)
रंग बरसा मेरे आंगना में उतर
भावजो का गुलाबी सा मन हो गया।
गिर गई फिर वो दीवार जो थी खड़ी,
मेरा आंगन भी फिर से बड़ा हो गया।
गांव के फाग में रंग सातों उडे,
लाल ,पीले का ज्यादा असर हो गया।
चढ़ गया रंग बाबा की पगड़ी पे जब,
नेह मिश्रित हृदय का घड़ा हो गया।
गेहूं की बाली में रंग सोना उड़ा।
पीली सरसों में पीले की क्या बात है।
चांदनी रात में चांद ने देखा जब,
ताल में आके वह भी खड़ा हो गया।
आम में बौर का रंग खिला इस क़दर,
डालियां भी विहस फागुनी गा उठी,
साथ कोयल जो देने लगी कूक कर,
पास महुआ भी रस से भरा हो गया।
नीम पर भी चढ़ी फागुनी इस तरह,
फूल भर भर फिज़ा में उड़ाने लगी,
ढोल बजने लगे फागुनी थाप पर,
भांग का रंग थोड़ा हरा हो गया।
रह सका न मेरा मन भी काबू में अब,
गीत के गांव में लहलहाने लगा।
नयन में छंद की बज उठी बांसुरी,
प्यारे मोहन का बस आसरा हो गया।
श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली उत्तरप्रदेश।
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