Hindi Sad Ghazals – पवन शर्मा परमार्थी

Hindi Sad Ghazals – पवन शर्मा परमार्थी

आज मन बहुत दुःखी है


ऐसा बुरा हुआ है हाल, आज मन बहुत दुःखी है,
सबका जीना हुआ मुहाल,, आज मन बहुत दुःख है।

चल रहा था अच्छा खासा, जीवन सभी लोगों का,
कोराना ने किया निढाल, आज मन बहुत दुःखी है।

बात रोटी की होती तो, भूखे सभी रह लेते,
बिगड़ी है साँसों की चाल, आज मन बहुत दुःखी है।

भटकते फिरते इधर-उधर, करने के लिए इलाज,
सभी भरें मिलें हस्पताल, आज मन बहुत दुःखी है।

ऑक्सीजन की कमी से, बड़े लोग मर रहे हैं,
डॉक्टर रहे मरीज को टाल, आज मन बहुत दुःखी है।

कब्रिस्तान, शमशानों में, हैं लम्बी लगी कतारें।
खाली हैं बिन लकड़ी टाल, आज मन बहुत दुःखी है।

हस्पतालों में ऑक्सीजन, नहीं कहीं मिल रही है,
एक दूजे पर रहे डाल, आज मन बहुत दुःखी है।

आज डरने लगे हैं लोग, हस्पताल जाने से,
कहीं खा नहीं जाए काल, आज मन बहुत दुःखी है।

जो दाखिल वहाँ’ हो जाते, ज़ियादातर मर जाते,
बने मुर्दाघर हस्पताल, आज मन बहुत दुःखी है।

पहले रोटी हेतु फिरते, जगत में मारे-मारे,
अब तो जिंदगी का सवाल, आज मन बहुत दुःखी है।

रोते बिलखते लोग देख, दर्द दिल में बहुत होता,
जिनके बुरे माह, दिन, साल, आज मन बहुत दुःखी है।

मरे माँ, बाप, बहन बेटी, और कोई रिश्तेदार,
औ’ खोये माँ-बाप के लाल, आज मन बहुत दुःखी है।

बेशर्म मौत के सौदागर, फैलाये फिर रहे हैं,
कालाबाजारी का जाल, आज मन बहुत दुःखी है।

हस्पताल कर्मचारियों का, हाल न पूछो बेहतर,
मुरदों की भी खींचें खाल, आज मन बहुत दुःखी है।

मुरदाघर हस्पताल तो क्या, शमशान, कब्रिस्तान में,
लाशें दीं सड़कों पर डाल, आज मन बहुत दुःखी है।

कोई नहीं सुनता गुहार, अरज कितनी भी करलो,
चलते टेढ़ी-मेढ़ी चाल, आज मन बहुत दुःखी है।

क्या होगा अपने देश का, समझ से हुआ परे है?
कैसी सियासत है कमाल, आज मन बहुत दुःखी है।


दोस्त वो निकल लिये

जिन्दगी का लगा चौका, दोस्त वो निकल लिये।
जैसे ही मिला मौका, दोस्त वो निकल लिये।

बेवक्त, कब, क्यों, क्या हुआ, कुछ नहीं पता चला,
न कुछ कहा, नहीं टोका, दोस्त वो निकल लिये।

ना शिकवा-शिकायत की, उसने परिवार से,
दे परिजनों को धोखा, दोस्त वो निकल लिये।

बड़ी मनहूस घड़ी थी, जब हमें खबर मिली,
शोक दे हमें विलोका, दोस्त वो निकल लिये।

बन गई अखबारों की, सुर्खियां जो ए दोस्त,
ऐसे बने परलोका, दोस्त वो निकल लिये।

छुटे, रिश्ते-नाते, प्यार, मुहब्बत सब उनसे,
तोड़के सम्बन्ध दिलों का, दोस्त वो निकल लिये।

मेरा-तेरा, कि तेरा-मेरा, सभी धरा रह गया,
डुबा जीवन की नौका, दोस्त वो निकल लिये।


ग़ज़ल


अपने चहेतों की लाशें, गिनते गिनते थक गए,
क्या अपने रोगी का हुआ, कहते कहते थक गए?

जो रोगी हस्पताल गया, वो ही लाश में बदला,
उसकी मौत की ख़बर मिले, रोते रोते तक गए।

हम किस पर विश्वास करें, और किस पर करें नहीं,
इस कशमकश में ही अब तो, जीते जीते तक गए।

हम डॉक्टरों पर भरोसा, समझ ईश करते रहे,
अब उन्हीं से धोखा हम तो, खाते खाते थक गए।

मरे ऑक्सीजन कमी से, और कुछ इंजेक्शन से,
हम बचा नहीं सके उनसे, सुनते सुनते थक गए।

नहीं कोई सरकार सुने, ना मानव अधिकार ही,
उनको चेताने की खातिर, लिखते लिखते थक गए।

हल कोई दीखता नहीं, इस समस्या का हमको,
दर्द अपनों के जाने का, सहते सहते थक गए।

अब कितने दोस्त रिश्तेदार, हम सबने हैं खो दिए,
श्रद्धांजली ॐ शान्ती, देते देते थक गए।

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पवन शर्मा परमार्थी
कवि-लेखक
दिल्ली, भारत ।

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