hindi kavita hataasha beech aasha- हताशा बीच आशा 

hindi kavita hataasha beech aasha :   सीताराम चौहान  पथिक   की   स्वरचित  रचना    हताशा  बीच  आशा’  कोरोना  काल   का  सजीव  चित्रण  प्रस्तुत  करती  है।  कविता   का  सन्देश  हर  व्यक्ति  में  आशा  की  लौ  को  जलाना  है  , क्या  करे  मानव  हर  जगह   झूठ , फरेब , कालाबाजारी  अब  तो  आशा  है  कि   ये  समय  जल्द  से  जल्द  कट  जाये।  यह कैसा युग कैसा परिवर्तन ॽरिश्ते नाते मर्यादाएं भंग  इन्ही  सभी  भावो  के  साथ  प्रस्तुत  है  रचना –

हताशा बीच आशा 


ऐ अल्लाह — परवर दिगार ,
हे वाहे गुरु मेरे करतार ।
कब्रिस्तान और श्मशानों में ,
धुआं – गुब्बार और हाहाकार।

कोई नहीं सुन रहा विनती ,
अंसुवन के बहते जल धारे।
स्ट्रेचर — एम्बुलेंस के नखरे ,
कांधे प्रिय जन, चल रहे किनारे।

यह कैसा युग कैसा परिवर्तन ॽ
रिश्ते नाते मर्यादाएं भंग  ।
कोरोना तो तॄतीय विश्व युद्ध ,
लाशों पर लाशें- रह गये दंग  ।

कैसा प्रबंध  – कौशल तुम्हाराॽ
ऑक्सीजन-दवाई कालाबाजारी ।
कैसे रोगी की करें चिकित्सा ॽ
डॉक्टर बेचारे, उनकी लाचारी।

तीमारदार दर- दर भटके ,
दस्तावेजों की  मारामारी ।
पहले इलाज फिर औपचारिकता ,
टूट गई मर्यादाएं सारी ।

कैसा कोरोना संक्रामक  रोग ,
उपचार-नियम कड़ाई से पालन ।
नित मास्क, हाथ साबुन से धोना ,
सामाजिक दूरी का प्रतिपालन ।

कोरोना भयानक रोग नहीं था
नियम कड़ाई से यदि चलते ।
आर्थिक – हानि होती अवश्य ,
कोरोना के  ना छलते ।

चीन विजय पा सकता है यदि
भारत भी कमजोर नहीं है।
ठोकर खाई है हमने यद्यपि ,
जाग पथिक, अब भोर नयी है


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सीताराम चौहान पथिक

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