एक वासंती गीत | दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’
एक वासंती गीत | दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’
एक वासंती गीत
शीत दूर हो रही,
सूर्य ताप छा गया।
लो वसंत आ गया,
लो वसंत आ गया।
बह रही वासंती पवन,
मन मयूर नाचता।
शीत ने लिखा जो पत्र,
धूप उसको बांचता।
अंग-अंग पोर-पोर,
क्यों नशा सा छा गया।
कोपलें हैं झांकती,
फूल महकनें लगे।
चंचरीक गीत गा के,
खूब चहकनें लगे।
फागुनी बयार गीत,
कोई आ के गा गया।
होली के रंग संग,
झूमती बयार चली।
आम मंजरी की महक,
हर गली व द्वार चली।
मौसम सुहाना हुआ,
सबके मन को भा गया।
दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’
रायबरेली