होली के छंद / बाबा कल्पनेश

होली के छंद / बाबा कल्पनेश

होली

विधा-कुंडलिया

होली की बोली सुखद,स र र र बोल कबीर।
लाल कमल के जीत पर,जग में उड़े अबीर।।
जग में उड़े अबीर,बुरा माने है कोई।
लेकिन हृदय विशाल,कलम ने नयन भिगोई।।
कैसे-कैसे लोग,व्यथित जिनकी अब बोली।
असमय कैसा क्लेश,खुशी लाई जब होली।।

जागा जब प्रह्लाद तब,आया ऐसा पर्व।
इस दिन इस भू-भाग पर,खुशी मनाते सर्व।।
खुशी मनाते सर्व,यही भारत की गरिमा।
संस्कृति का त्योहार,लखो यह हरि की महिमा।।
बद्री से आसेतु,बँधे प्रेमिल सब धागा।
सारा हिंदुस्तान,सुखद वेला इस जागा।।

कल्लू की माई चली,राई-नोन उतार।
गई होलिका शरण में,देने को जल धार।।
देने को जलधार,रहे भारत अब नीके।
बच्चे रहें निहाल,सुखद रोली सब टीके।।
ऊँचा किए लिलार,उछलकर बोला लल्लू।
दिक्-दिक् पंकज लाल,खिले अब देखो कल्लू।।

होली की बोली सुखद,स र र र बोल कबीर
सारे भारत वर्ष में,प्रातः सुखद समीर।।
प्रातः सुखद समीर,भरे पिचकारी बच्चे।
ये ही तो प्रह्लाद,सदा उर के हैं सच्चे।।
हिय आकर्षण हेतु,भली इनकी है बोली।
बहुत अधिक श्रम साध्य,सहज ये लाए होली।।

गमके सकल समाज यह,शिशु जब जाते फूल।
होली लाई सुखद क्षण,माथे रजकण धूल।।
माथे रजकण धूल,लगा प्रह्लाद हमारा।
शिव-शिव-हरि-हरि-शक्ति,जगत गूँजे यह सारा।।
अपना भारत वर्ष,जगत माथे पर चमके।
पंकज का सैलाब,गगन तक भारत गमके।।

बोला भारत शरण हूँ,हे मोदी सरकार।
हाथ तुम्हारे ही सरल,मंगलमय उद्धार।।
मंगलमय उद्धार,जुटे खलदल बहुतेरे।
मादक-मद्य निषेध,पिए रहते नित घेरे।।
भारत भू के मध्य,इन्होंने विष है घोला।
राजनीति हुड़दंग लखें,भारत यह बोला।।

कल का भारत खुल रहा,पढ़ लें पन्ने आप।
एकल था प्रह्लाद पर,अद्भुत दिखा प्रताप।।
अद्भुत दिखा प्रताप,पिता हिरण्या भी हारा।
हुई होलिका भस्म,बही ऐसी थी धारा।।
आया जब मधुमास,पराक्रम टूटा खल का।
होली के इस रंग,उभर आया छवि कल का।।

बाबा कल्पनेश

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