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इल्ज़ाम | ग़ज़ल | राजेन्द्र वर्मा “राज”

यूँ बेवज़ह इल्ज़ाम लगाने के बाद भी ।
वो खुश नही है मुझको रूलाने के बाद भी ।।

रहते नहीं हैं याद कई लोग मिल के भी ।
कूछ भूलते नही हैं ज़माने के बाद भी ।।

गैरों के ही कंधे उठा बूढ़े का जनाज़ा ।
बेटे नही आए हैं बुलाने के बाद भी ।।

कुछ मौज से जीते हैं फ़कीरी की ज़िन्दगी ।
कुछ लोग परेशां हैं कमाने के बाद भो

ढूँढो तो कहीं राम नज़र ही नही आते ।
रावण नहीं मरा है जलाने के बाद भी ।।

आया न कोई कृष्ण द्रौपदी को बचाने ।
बस्ती में बहुत शोर मचाने के बाद भी ।।

रब ने दिया बहुत कुछ मांगे बिना मगर ।
कुछ रह गया फ़रियाद लगाने के बाद भी ।।

बदली न गयी चाल तुमसे “राज” वक्त की ।
रफ़्तार अपनी खूब बढ़ाने के बाद भी ।।

राजेन्द्र वर्मा “राज”

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