कमरे की आवाज़ | सम्पूर्णानंद मिश्र

कमरे की आवाज़ | सम्पूर्णानंद मिश्र

संदेश देती है
घड़ी
वक्त की धारा में डुबकी लगाओ

संदेश देता है पंखा
दिमाग ठंडा रखो

न बहाओ क्रोध का पसीना अनावश्यक

छत कहता है
बड़ा सोचो

छोटी-छोटी सोच
मार देती है इंसान को
उम्र से पहले

घर का कैलेण्डर
रोज मुझसे कहता है
वक्त
खिसक रहा है
रेत की तरह
मुट्ठी से

बुरे वक्त के लिए
बचत की आदत डालो
पर्स रोज़ मुझसे कहता है

दर्पण कहता है
रोज़ देखो
चेहरा मुझमें
अपने कर्मों का

दीवारें रोज़ मुझसे
कहती हैं
दूसरे का बोझ बांटों

कहती है
खिड़की कानों में रोज़
देखने का दायरा बढ़ाओ

फर्श कहता है
हमेशा ज़मीन पर रहो

शून्य हो जाता है
ज़मीन से गिरने का ख़तरा

अपने आप से पूछा
मैंने
आज
ज़िंदगी कैसे जीनी चाहिए

मेरा पूरा कमरा ही ज़वाब
आज देने लगा मुझे

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी

7458994874

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