कौन हवाओं से पूछेगा / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश
सजल
कौन हवाओं से पूछेगा,
पल-पल प्रियवर याद तुम्हारी,तड़पा जाती है,
गुलशन के हर गुल-ओ-खार को,महका जाती है।1।
राख हुए जंगल सी बस,अपनी राम-कहानी,
दो पल रुककर पागल मन को,समझा जाती है।2।
तन्हॉ मैंने देख लिया है,जीवन की सच्चाई,
सोच-समझ कर चलना चाहूॅ,भरमा जाती है।3।
कौन हवाओं से पूछेगा,उनकी मनमानी,
कोमल कलियों को सुरभित कर,बहॅका जाती है।4।
बिना पिये जो बहॅक गया,उसको क्या समझाना,
पीकर ही हैं लोग बहॅकते,झुठला जाती है।5।
मुझे नजर भर कोई पिलादे,आहिस्ता-आहिस्ता,
एक यही ख्वाहिश बस अपनी,तरसा जाती है।6।
कल जिनको राह दिखाया मैंने,शायद भूल हुई,
आज कहूॅ जो दिल की बातें,शरमा जाती है।7।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उ प्र) 229010
9415955693