Kavita on migrant labour-परम हंस मौर्य
Kavita on migrant labour
परम हंस मौर्य
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मजदूरो की मजबूरी
पांवो मे पड़ गये छाले है खाने को नहीं निवाले हैं।
ये सब देख कर भी तू कहता है हम ऊपर वाले है।
उठता नही अब बोझ ये हमसे कैसे चलू मै रस्ता।
हे ईश्वर मेरी मदद के लिये भेज दे कोई फरिश्ता।
थक गये है पांव मगर चलने का हौसला पाले है।
ये सब देख कर भी तू कहता है हम ऊपर वाले है।
घर पे मिलती सुकून की रोटी तो बाहर कमाने क्यो जाते।
हम भी अपने घर के राजा होते दर-दर की ठोकर क्यो खाते।
जायें तो हम कहाँ जायें हर तरफ लटकते ताले है।
ये सब देख कर भी तू कहता है हम ऊपर वाले है।
भूख प्यास से ब्याकुल बच्चे तरस रहें खाना पानी को।
कोई न समझे मजबूरी इनकी कोई न देखे परेशानी को।
आँखो मे आँसू लेकर दिल मे गम को सम्भाले हैं।
ये सब देख कर भी तू कहता है हम ऊपर वाले हैं।
पेट की खातिर लोगो को क्या-क्या करना पड़ता है।
होके तंग बेरहम गरीबी से भूखे मरना पड़ता है।
परम हंस जीवन के खेल तो बड़े ही निराले हैं।
ये सब देख कर भी तू कहता है हम ऊपर वाले है।
परम हंस मौर्य
रायबरेली उत्तर प्रदेश