Deep jale ujiyara ho-हरिश्चंद्र त्रिपाठी

दीप जले उजियारा हो ।

 (Deep jale ujiyara ho)

हर चौखट पर दीप जले उजियारा हो,
साथ  बढ़ें सब, सबमें  भाईचारा  हो।
गहन तमस की निद्रा तोड़ो जागो तुम,
जीवन झंझा से लड़ना, मत भागो तुम।
श्रमसाधन बन,कर्मवीर तुम कर्म करो,
जगन्नाथ तुम स्वयं बनो,मत मॉगो तुम।
स्वेद-कणों से सुरभित घर चौबारा हो ।
हर चौखट पर दीप जले उजियारा हो।
साथ बढ़ें सब, सबमें भाईचारा हो। 1।
ओछेभाव विचारों से बचकर के रहना,
बन स्नेहगंग की दिव्यधार नितहीबहना
भरत भूमि का शौर्य पराक्रम तुझमें है,
गढ़ परिवेश नया तू, जय स्वदेश कहना
चन्दन  माटी  से  श्रृंगार  तुम्हारा  हो।
 हर चौखट पर दीप जले उजियारा हो,
साथ बढें सब, सबमें भाईचारा हो। 2।
लिख विकास की गाथा नूतन अक्षय वट हो,
खगकुल कलरव उपवन गूंजे, सुरभित पनघट हो।
सुन मानव तू बढ़ कर रच दे ,नव धरती अम्बर-
सुख समृद्धि से सराबोर, घर ऑगन चौखट हो।
फिर विश्वगुरू हे मित्र,यह देश हमारा  हो।
हर चौखट पर दीप जले उजियारा हो,
साथ  बढ़ें  सब,सब में भाईचारा हो ।3।
हरिश्चंद्र त्रिपाठी
रचयिता :–हरिश्चंद्र त्रिपाठी हरीश रायबरेली ।
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