Khaamosh- ख़ामोश/ सम्पूर्णानंद मिश्र

Khaamosh- ख़ामोश/ सम्पूर्णानंद मिश्र

नमस्कार आपका हिंदीरचनाकर में आपका स्वागत है आज हम बनारस के प्रसिद्ध साहित्यकार  डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र  की  स्वरचित रचना  खामोश  पढ़ेंगे। जो  प्रकृति से संबंधित है  इस रचना में लेखक ने प्रकृति के गुणों को व्यक्त किया है कि वह कैसे खामोश होकर इस  संसार का संतुलन बनाये रखती है ,  नदी खामोश रहकर अपने राहगीरों की प्यास बुझाती है , पेड़ खामोश रहकर सभी को अपना फल- फूल  सब्ज़ी प्रदान करते है , हवा भी खामोश होकर सभी को ऑक्सीजन प्रदान करती है।  इस प्रकार कह सकते है खामोश प्रकृति का हमे सम्मान करना चाहिए यह दुर्लभ है  प्रस्तुत है रचना  हमे आशा है कि आप पूरी रचना पढ़ेंगे।

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ख़ामोश


ख़ामोश रहती हैं जड़ें
फड़फड़ाती नहीं हैं
जहां फड़फड़ाहट है
वहां जीवन नहीं है
चाहे वृक्ष हो या मनुष्य
जिसकी सोर भूगर्भीय संबंधों की हवा का पान नहीं करती
वह शीघ्र मर जाती है
चाहे परिवार हो या प्रकृति
सारी पीड़ाएं पीती हैं
नग्न आंखों से इसीलिए प्रकृति
क्योंकि उसे परवाह है अपने आत्मीयजन की।
समय- असमय वह
क्रोध की भट्ठी बुझाए रखती है
क्योंकि वह जानती है
विनाश की ड्योढ़ी तक जाता है
क्रोध का पथ


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