अरविंद जायसवाल की कविताएं | Poems of Arvind Jaiswal
अरविंद जायसवाल की कविताएं | Poems of Arvind Jaiswal
वफायें मेरी
जब कभी दर्द अपने देते हैं,
सारा सुख चैन छीन लेते हैं।
भूख लगती न प्यास लगती है,
दिल में खंजर सा मार देते हैं।
जब कभी दर्द अपने देते हैं।।
सारी उम्मीदें बहती जाती हैं,
जैसे नदिया में रेत के तिनके।
भुला के सारी वफायें मेरी,
बेवफा का करार देते हैं।
जब कभी दर्द अपने देते हैं।।
घाव पर घाव हुए पीर दाबाये बैठे,
पराये अपने हुए अपने पराये बैठे।
कैसे अरविंद दिखाएँ वो घाव तीरों के,
जाने अंजाने में जो अपने मार देते हैं।
जब कभी दर्द अपने देते हैं।।
पुष्प
आरती के थाल में सजता रहा,
गुनगुनाती धूप में खिलता रहा,
कंटकों के बीच रहकर मुस्करा,
पवन के संग संग रहकर घुलघुला,
प्रियतमा के मिलन का साक्षी रहा,
बन गले का हार मैं पड़ता रहा,
आरती के थाल में सजता रहा,
पुष्प हूँ मैं प्रेम मय जीवन मेरा,
झाड़ियों में क्यारियों में खिलखिला,
प्रेरणा अरविंद मैं देता सदा,
टूटकर भी प्रेम वर्षाता रहा
आरती के थाल में सजता रहा|
अंजान
अतृप्त रेत
जब तेरा ही अंश जब तेरा ही वँश,
चन्द सिक्कों को पाने के लिए,
जब तेरा ही कुटुम्ब तेरा प्रतिबिम्ब्
तुझको ही रास्ते से हटाने के लिए,
तरकश से अग्निबाण छोड़े,
उस क्षणिक तूफान को गुजर जाने दे,
अथाह शांति सागर में समाने के लिए,
धीरे धीरे शीतल हवायें लौटेंगी,
जो जलते बिचलित मन सहलाकर,
प्रेम से सराबोर कर देंगी,
तू फिर से मचलेगा अतृप्त रेत की तरह,
बाहें फैलाकर दोडेगा उनको पाने के लिए,
अरविंद उस आलिंगन से परमानंद मिलेगा,
क्षमाकर भटकों को सही राह पर लाने के लिए।
इच्छा
मन के तार सजाकर हमने,
वीणा में साजे हैं।
तुमको आनंदित करने को,
स्वर हमने साधे हैं।
मन के तार सजाकर हमने,
वीणा में साजे हैं।। १।।
हाथों में जयमाल लिये मैं,
कब से करूँ प्रतीक्षा।
तुम्हें वरण करने की प्रियतम,
जाग रही है इच्छा।
इन नयनों के द्वार तुम्हारे,
दर्शन को प्यासे हैं।
मन के तार सजाकर हमने,
वीणा में साजे हैं।। २।।
धूल धुंध धूसरित नयन,
जब जोर चली पुरवाई।
श्यामलता की धार हमारे,
नयनों से बह आई।
तुम्हें रिझाने को अरविंद ने,
पग घुंघरु बांधे हैं।
मन के तार सजाकर हमने,
वीणा में साजे हैं।। ३।।
अरविन्द जायसवाल
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