Tootee Veena – टूटी वीणा / सीताराम चौहान पथिक

Tootee Veena – टूटी वीणा / सीताराम चौहान पथिक

प्रस्तुत रचना  टूटी वीणा / सीताराम चौहान पथिक द्वारा रचित दर्पण संग्रह से ली गयी है यह संग्रह १९७२ में प्रकाशित हुआ था। हमे आशा है कि आप पूरी रचना पढ़ेंगे।

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टूटी वीणा ।।


टूट गए वीणा के तार ।
किसकी गागर से जल छलका ,
किसके नयनों का जल बरसा,
किसके मन का टूटा मनका ,
किसका बिखर गया संसार ?
टूट गए वीणा के तार ।

किसकी आह ने तड़पाया है ,
मम अंतस्थल  थर्राया है ,
किसका यह मन दुखियाया है
कौन सुमुखी रोती है नार ?
टूट गए वीणा के तार ।

कहो- कहो हे दुखिया नारी ,
कौन हो तुम किस दुःख की मारी ?
क्यों जीवन की बाज़ी हारी ?
नयनों से क्यों बहती धार ?
टूट गए वीणा के तार ।

सुनो- सुनो सुकुमार तरुण कवि ,
मैं भारत- माता हूं हे कवि ,
आज हो रही कुंठित मम छवि
छुआछूत की खड़ी दीवार ,
तब क्यों ना टूटेंगे तार ।।

आज मेरे यह जिगर के टुकड़े,
ऊंच  – नीच बंधन  में जकड़े ,
हाय दहेज़ पर होते झगड़े ,
अबलाओ की हाहाकार ।
तब क्यों ना टूटेंगे तार ।।

उठ है कवि – आलस्य भगा दे,
लिख कविता जन-जन को जगा दे ,
देश-प्रेम अंकुर  उपजा दे ,
तब होगी कविता साकार ।
और नहीं टूटेंगे तार ।।


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