ख़ारिज करता है पिता / सम्पूर्णानंद मिश्र
ख़ारिज करता है पिता / सम्पूर्णानंद मिश्र
नहीं पनप
सकता लघु पौधा
बरगद की छांव में
पिता
ख़ारिज करता है
उक्त कथन
क्योंकि
स्पष्ट अंतर दिखाई देता है
पिता और बरगद में
जहां पिता
आत्मीयजन को
अपना सिरमौर बनाता है
स्नेह के जल से सींचता है
प्यार के धूप से
मालिश करता है
अपनी छाया में
बढ़ने वाले पौधों को
संघर्षों की नदी
पार करने की
कला में भी पारंगत करता है
वहीं बरगद की छाया में
में पनपने वाले पौधे
उसके स्नेह
व आशीष के धूप की मालिश के बिना कुम्हला जाते हैं
वहीं
कामयाबी के पंखों से
जब आकाशीय ऊंचाइयां
छूने लगती हैं
पिता की संतानें
तो
खिलता है पिता
कली की तरह
झूमता है
धान की बालियों की तरह
लेकिन
विकास के
इस क्रम में
आत्मजन
जब
सफलता के
सिंहासन पर बैठकर
पिता की इच्छाओं की
इमारतों पर
उपेक्षा का
जे०सी० बी० चलाता है
तब
पिता के
हृदय के न
जाने कितने
टुकड़े हो जाते हैं
फिर भी
अपनी संतानों के ऊपर
उड़ेलता ही रहता है
अपना आशीर्वादात्मक जल
तब
बहुत ऊंचा हो जाता है
पिता बरगद से
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874