मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन / पवन शर्मा परमार्थी

मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन / पवन शर्मा परमार्थी

प्रस्तुत रचना में नारी  पीड़ा का  उजागर लेखक के द्वारा किया गया है  कि किस तरह नारी का दमन  हो रहा है , इससे मन काफी क्रोधित होता है न्याय मिलने में भी काफी छलावा है।  इन्ही भावों के साथ गीत पाठकों  के समक्ष प्रस्तुत है :-

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गीत

मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन


मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन।
है चोट करके हो रहा दुर्जन मगन।।

नारी के संग हो रहा संत्रास है,
भय से पीड़ित भयभीत है, उदास है,
चारों दिशा देखती लुटने के बाद,
खोई जैसे चीज बहुत ही खास है,
लुट गई बनने से पहले जो दुल्हन।
मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन।।

शहर, कूचे, गाँव में थी चर्चा हुयी,
गुम हो गई आवाज उसकी सुरमयी,
उसकी हालत सभी को ये बता रही,
कुछ ना सुनती है ये दुनिया निर्दयी,
अबला की ही होता अस्मत का दलन।
मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन।।

आबरू के साथ हुई दादागीरी,
आँखें बेबस आँसूओं से हैं भरी,
इक क्रूरता के हाथ में कच्ची कली,
मसल दी गई ऐसी इंसानियत मरी,
कांपते जिससे ये धरती और गगन।
मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन।।

अबला संग कैसा ये अत्याचार है,
बड़ा बेबसी पर हो रहा प्रहार है,
इस शैतानी सोच को कोई क्या कहे?
नारी का जीना अब तो दुश्वार है,
भावना का ही हो रहा खुलकर हनन।
मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन।।

ये देश बना जुर्म का अब पर्याय है,
ना पीड़िता को मिलता यहाँ न्याय है,
अगर जुल्मियों को सजा मिल जाए तो,
खुल जाता फिर कोई नया अध्याय है,
अब न्याय के भी संग होता है छलन।
मन क्रुद्ध होता देख नारी का दमन।।


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पवन शर्मा परमार्थी

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