Achhe Din Kab Aayenge – अच्छे दिन कब आएंगे

Achhe Din Kab Aayenge – अच्छे दिन कब आएंगे

प्रस्तुत रचना वरिष्ठ साहित्यकार  सीताराम चौहान  पथिक द्वारा रचित वर्तमान परिपेक्ष्य  को लेकर है ,  कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद सब्ज़ी के दाम आम आदमी की पहुंच से दूर होते जा रहे है , जमाखोर  तेल से लेकर फल -सब्ज़ी की जमाखोरी में लगे है  और मुनाफा कमा रहे है , लेखक  की अपील है जनप्रतिनिधियों से कि आम जनता का भी ध्यान दे ,  अब तो दाल रोटी खाना भी मुश्किल हो रहा है।  हमे आशा है आपको रचना पसंद आएंगी , अगर आपको रचना से  सबंधित  कोई सवाल है कमेंट बॉक्स में बताये हमारी टीम आपके सवाल का जवाव तुरन्त देने का प्रयास करेगी।

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अच्छे दिन कब ?

हर सब्जी में आग लगी है ,
हाथ धरो जलने लगता है ।
आलू-प्याज टमाटर भी अब ,
आँख दिखाता सा लगता है।

मंहगाई  का भूत सताता ,
जन – सामान्य ठगा रह जाता
जमाखोर – – कालाबाजारिये ,
नाता नेताओं से अब लगता ।

लूट – खसोट मची मण्डी में ,
नोट हज़ार का छोटा लगता।
अच्छे दिन आने वाले हैं ,
सोच कलेजा जलने लगता ।

नित-नित नेताओं के नारे ,
सभी छलावा सा है लगता ।
कब  मंहगाई  से मुक्ति मिलेगी,
काँधे  पर झोला खाली सजता

सोचा-अब सब्जी को छोड़ो ,
रोटी- अचार जब खाने लगता
यहीं ग़रीब का सस्ता भोजन ,
मर्तबान भी खाली लगता ।

अच्छे दिन कैसे आएंगे  ,
जीना भी अब मुश्किल लगता ।
मोदी जी कुछ करो करिश्मा ,
जन-विश्वास खिसकता लगता ।।

सीताराम चौहान पथिक


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