मानव धर्म अटल हो जाये / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
मानव धर्म अटल हो जाये / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
रख दो पावन पद रज मस्तक,
जीवन धन्य सफल हो जाये।
दिव्य-दृष्टि से देखो माते ,
पातक उर निर्मल हो जाये।टेक।
भव सागर पार कराती हो,
मॉ मन्द-मन्द मुसकाती हो ।
कण-कण सृष्टि तुम्हारी माया-
नित अन्तर्दीप जलाती हो।
कर दो चेतन जड़ जग जंगम,
सूखा अधर कमल हो जाये।
रख दो पावन पद रज मस्तक,
जीवन धन्य सफल हो जाये।1।
छल-छद्म, द्वेष-पाखंड भरा ,
कैसे कह दूॅ हर माल खरा ।
भौतिकता में भटक गए हम-
सब अपनापन रह गया धरा ।
स्वार्थ-मोह का बन्धन तोड़ो-,
मानव -धर्म अटल हो जाये।
रख दो पावन पद रज मस्तक,
जीवन धन्य सफल हो जाये ।2।
भरत- देश की श्रेयस माटी,
युगों-युगों से सुरभित घाटी ।
घर ऑगन गलियारों में है,
अभी सुरक्षित हर परिपाटी ।
दुष्टों का संहार करो मॉ ,
दुर्दिन-तमस धवल हो जाये।
रख दो पावन पद रज मस्तक,
जीवन धन्य सफल हो जाये ।3।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’