Nafrat ki aag-नफ़रत की आग/संपूर्णानंद मिश्र

Nafrat ki aag

 नफ़रत की आग


 

नफ़रत की आग 

 लिए क्यों बैठे हो 

आपदा में भी 

इतने क्यों ऐंठे हो 

 सीने में खंज़र 

भोंकने की ख्वाहिशें

 अब भी पाले हो

कोरोना में भी 

ज़हर घोल डाले हो 

रंजिशों की बीजों को 

  सतत बोते गए 

 स्वजनों को 

निरंतर खोते गए 

सियासत की दरिया

 में बहुत डूब लिए 

अब कुछ जन-मानस के

लिए भी जी लीजिए 

दुर्दिन में माहुर देकर 

मारना कहां की रीति है

सदियों से भी अपनी 

यह नहीं नीति है

 अदावत अपनी जगह ठीक है 

 विपक्ष के लिए ठोस लीक है

लेकिन आज सब मिलकर 

देश के साथ खड़े हो जाएं 

और इस महामारी 

 को कुचलकर

 प्रेम- गीत गा जाएं!

Nafrat-ki-aag

 

संपूर्णानंद मिश्र

प्रयागराज फूलपुर

7458994874

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