नहीं रहा मन अपने वश में | मत प्यार कीजिए | Hindi Kavita
नहीं रहा मन अपने वश में | मत प्यार कीजिए | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
रोम-रोम में अकुलाहट है,
पल-पल सुधि में घबराहट है,
नहीं रहा मन अपने वश में,
कुछ और नहीं फगुनाहट है।1।
गुन-गुन गाता काला भौंरा,
स्नेहिल राग सुनाता भौंरा ।
निर्मल कोमल अधरों का,
चुम्बन ले उड़ जाता भौंरा।2।
कली नहीं कुछ कह पाती है,
ठगी-ठगी सी रह जाती है ।
उर-अन्तर नेहिल गंग-धार में,
सॅकुचाती फिर बह जाती है।3।
सपने सच सुन्दर क्वॉरे थे,
कलिका ने स्वयं सॅवारे थे।
साथ मलय के भौंरे ने ही,
मादक पल सहज गुजारे थे।4।
औख खुली की खुली रह गई,
लुट कर कलिका ठगी रह गई।
चेतनता निस्तेज हुई सी
अनल प्रणय की लगी रह गई।5।
२. मत प्यार कीजिए
छल-छद्म भरे मन से,मत प्यार कीजिए,
निष्कपट उदार मन,श्रृंगार कीजिए।1।
जबसे तुम खफा हुए हो,दर्द बढ़ गया,
हो सके तो स्नेह का,आधार दीजिए।2।
जिस किताब में लिखा, धर्म-जाति से लड़ें,
खुशहाल हों यहॉ सभी,वह फाड़ दीजिए।3।
इक पल ठहर के देख ले, हालाते-दिल मेरा,
रुकना हुआ मुनासिब,इतवार कीजिए।4।
मैंने तो दे दिया था , पहली नजर में दिल,
इस दिल के मामले में ,न उधार कीजिए।5।
कहते हैं लोग जो कुछ,वह उनकी राय है,
हर एक दिल पे खुलकर,एतबार कीजिए।6।
दुनियॉ पड़ी तलाश ले,जाकर कोई जगह,
इस दिल की गली में नहीं,व्यापार कीजिए।7।
३. करते सभी चुनावी बात
लेकर सपनों की सौगात,
खुद की नहीं दिखी औकात।1।
बाजे-गाजे सुरे-बेसुरे-
करते सभी चुनावी बात।2।
पिछला जख्म नहीं भर पाये,
बेबुनियादी सारी बात ।3।
ताल ठोंकते,माल झोंकते,
गुपचुप मिलते सारी रात । 4।
इनका लगता एक इरादा,
तोड़ो,बॉटो सारी जात ।5।
कुछ क्या सब जयचन्दी लगते,
मतदाता पर इनकी घात ।6।
कुछ तो धरती पुत्र भटकते ,
कुछ सोच रहे शंकर -बारात।7।
जलती दुनिया देख रहा मैं,
इनमें दिखता भीतर घात ।8।
मत उसको अपना मत दो,
जो करे नहीं भारत की बात।9।
वीर-शहीदों को न भूलें,
राष्ट्र-विरोधी को दो मात।10।
४. शिव शंकर दो वरदान,
हे शिव शंकर दो वरदान,
लगे सुधा सम हर विषपान।1।
द्वादश ज्योतिर्लिंग सुपावन,
शोक-पाप-संताप नसावन।2।
भृकुटि-विलास प्रलय-उद्बोधक,
सरल दयामय काम-विमोचक।3।
शुचि गंग-तरंग सुभाल सजाये,
फुफकारत नाग ,अधर मुसकाये।4।
वृष वाहन धन्य,सुकर्म फले,
युग-संचित घृणित अधर्म जले।,5।
नानाविधि संत्रास भरा जग,
स्वार्थ-तमस-अवरोधित पग।6।
मिथ्या जगत,हो तुम अविनाशी,
दया-दृष्टि दो,कैलाशवासी ।7।
हर-हर बम-बम बोलें सब,
अधर सुधा रस घोलें सब।8।
अब दीन-मलीन रहे न कोई,
सब पर कृपा करो प्रभु सोई।9।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उप्र)-229010
9125908549