पॉव भटक न जायें सुन तू / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’

पॉव भटक न जायें सुन तू / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’

कॉटों भरी डगर जीवन की,
जिस पर तुझको चलना है,
पॉव भटक न जायें सुन तू,
प्यारी मेरी ललना है। टेक।

तुझे पता न मेरी बेटी,
कैसे तुझको पाला है,
तेरी हर सॉसों की कीमत,
देकर किया उजाला है।
तुझे खिलाया खुद न खाया,
साथ तुम्हारे हॅसना है।
पॉव भटक न जायें सुन तू,
प्यारी मेरी ललना है।1।

साथ प्रकृति के सदा बदलता,
मानव का व्यवहार रहा ,
लोभ,मोहवश अनुयायी सब,
अन्तर कपट-विकार रहा।
धर्म-नीति कुछ भी न दिखती,
अपना बनकर छलना है।
पॉव भटक न जायें सुन तू,
प्यारी मेरी ललना है।2।

शस्त्र-शास्त्र में पारंगत हो,
तुमको इतिहास बदलना है,
कल गौरवशाली था तेरा,
बनकर भूगोल निखरना है।
संस्कार की दिव्य धरोहर,
तुझे सुरक्षित रखना है।
पॉव भटक न जायें सुन तू,
प्यारी मेरी ललना है।3।

बनकर अपने सगे दरिन्दे,
मोह-पाश ना डालें,
तेरी निश्छल भावुकता को,
तार-तार कर डालें।
भौतिकता की ऑधी से,
बच जा बेटी कहना है।
पॉव भटक न जायें सुन तू,
प्यारी मेरी ललना है।4।

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