परवाह किसे है / शैलेन्द्र कुमार
परवाह किसे है /शैलेन्द्र कुमार
मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं
हमेशा तनाव में रहता हूंँ
अकेला पड़ गया हूं मैं
मर जाऊं, यही सोचता रहता हूंँ
किंतु परवाह किसे है?
परिवार ने जली-कटी सुनाई
बीमारी में दोस्त नहीं आया
मन अशांत हुआ तो
प्रेमिका ने साथ नहीं निभाया
मेरी परवाह किसे है?
मांँ ने कहा था
न जागो रात भर, फोन रखो, सो जाओ
पापा ने कहा था
प्रातः उठकर, योग करो, टहलने जाओ
बहन ने कहा था
जो कद्र न करे प्यार की, उसे भूल जाओ
मैंने नहीं सुनी किसी की
नहीं की परवाह किसी की
(उपेक्षित कर सबको, बोला मैं-“परवाह किसे है।”)
जब स्वयं की ही
परवाह नहीं किसी को
तो
औरों की
परवाह किसे है?
शैलेन्द्र कुमार असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी
राजकीय महिला महाविद्यालय कन्नौज