pushpa-srivastava-shelly-ke-dohe

पतली पगडंडी | Hindi Kavita | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

पतली पगडंडी | Hindi Kavita | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

उस पतली पगडंडी पर तुम कैसे
कैसे दौड़ा करते थे।
कच्ची अमिया के गुच्छे को
कैसे तोड़ा करते थे।

बहुत बार हम गिरे साथ ही
फिसल फिसल कर मेडो पर।
देख लिया हो कोई तो फिर
सोच हंसे हम मेड़ों पर।
मा की तगड़ी डांट पड़ेगी
कैसे थोड़ा डरते थे।
उस पतली पगडंडी पर हम
कैसे दौड़ा करते थे।

इमली के खट्टे पन का
वो स्वाद अहा क्या कहना था।
ऐसा लगता उसी स्वाद में
रहना और संवरना था।
दो दो पैसे इसीलिए
हम कैसे जोड़ा करते थे।
उस पतली पगडंडी पर हम
कैसे दौड़ा करते थे।

एक रुपइया पाकर हम तो
धनवाले बन जाते थे।
तकिए के नीचे रख सोते,
और जल्दी जग जाते थे।
जल्दी उठकर हम ही
अपना बिस्तर मोड़ा करते थे।
उस पतली पगडंडी पर हम
कैसे दौड़ा करते थे।

गया बचपना कहां मिलेगी,
इन पांवों को पगडंडी।
पेड़ आज भी खड़े है लेकर
अमिया और इमली खट्टी।
पावों को डर लगता है अब
पगडंडी पर जाने से।
जीभ डरी जाती है अब तो
खट्टी इमली खाने से।
चिलविल भी तो खूब साथ में,
अजी बटोरा करते थे।
उस पतली पगडंडी पर,
हम कैसे दौड़ा करते थे।।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *