‘शब्द-शक्ति’ | आरती जायसवाल
‘शब्द-शक्ति’ | आरती जायसवाल
‘शब्द की शक्ति अनूठी होती है’
कभी संहारक तो कभी निर्माण की भूमिका में
यों ही नहीं बोले और लिखे जाते हैं शब्द ;
क्योंकि शब्द छूते हैं हमारे मन मस्तिष्क को
हमको करते हैं प्रभावित कभी झिझोंड़ते हैं ,
कभी प्रोत्साहित करते हैं, कभी हतोत्साहित करते हैं और कभी विजय मार्ग दिखाते हैं ।
शब्द की गति बहुत तीव्र होती है;
बेध जाते हैं जीतर तक। प्रेम पूर्ण शब्दों से कभी भीग जाता है अंतर्मन,
कभी छलनी हो जाता है, ‘प्रशंसा,प्रेम, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध से भरे शब्द’
सदैव के लिए छप जाते हैं मर्मस्थल पर;
स्मरण रहते हैं और समय-समय पर चेतना में स्वयं को दोहराते हैं,
कभी हम उनसे उर्जा पाते हैं,
कभी निश्चल ,निढाल हो जाते हैं ;
शब्द शक्ति बहुत ही अनूठी होती है।
यह हमें पीछे भी धकेलते हैं,
यह हमें आगे भी ले जाते हैं।
किसी के कहे गए निराशाजनक शब्दों से कभी निराश ना होना,
‘अपने लिए चुन लेना कुछ ऐसे शब्द
जो तुम्हें सदैव शीर्ष पर ले जाएँ और दूसरों के लिए
बुन लेना ऐसे शब्द जो उन्हें शीर्ष पर ले जाएँ’
शब्द की शक्ति अनूठी होती है;
शब्द यों ही नहीं बोले और लिखे जाते।
– आरती जायसवाल
कथाकर, समीक्षक