पवन शर्मा परमार्थी के गीत | Pawan Sharma Parmarthi ke Geet
पवन शर्मा परमार्थी के गीत Pawan Sharma Parmarthi ke Geet
गीत
जीवन के प्रति हमको रहती, अति व्याकुलता है।
आज पग-पग पर दुष्कर्म, मर्म हृदय में पलता है।
(01)
कण्टक पथ में बिछे हुए हैं जिन पर हमें चलना,
चहूँ ओर फैले दावानल प्रतिपल है जलना,
इन सबसे बचना जीवन की पूर्ण सफलता है।
आज पग-पग पर दुष्कर्म, मर्म हृदय में पलता है।
(02)
कहीं पर भी विश्राम नहीं बस चलते ही जाना ,
सुनता न कोई पीर तो बेकार है सुनाना,
मिलता नहीं है न्याय, न्यायकर्ता भी बिकता है।
जीवन के प्रति हमको रहती अति व्याकुलता है।
(03)
अनाचार, व्यभिचार आज तो देखो नगन खड़े,
पाखण्डी, उद्वन्डी अनर्गल आपस में ही लड़े,
देख-देख टकराव कि अपना मन तो डरता है।
आज पग-पग पर दुष्कर्म मर्म हृदय में पलता है।
(04)
प्रजातन्त्र का मन्त्र बना है, जन-जन की भाषा,
लूट-खसोट अन्याय बनी है जिसकी परिभाषा,
जब शासक शोषक बन जाए कहाँ कुशलता है।
जीवन के प्रति हमको रहती अति व्याकुलता है।
पवन शर्मा परमार्थी
कवि-लेखक
दिल्ली, भारत।
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