पिता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ | पिता हिंदी कविता
जिसने हाथ पकड़ कर पग-पग,
चलना मुझे सिखाया,
प्रिय समाज के रिश्ते-नातों,
से परिचय करवाया।टेक।
नमन सदा उनके चरणों में,
बारम्बार प्रणाम करूॅ,
स्नेह,दया,करुणा,ममता का,
दर्शन आठों याम करूॅ।
धर्म-कर्म,सहयोग,त्याग का,
पावन पथ दिखलाया।
जिसने हाथ पकड़कर पग-पग,
चलना मुझे सिखाया।1।
धन्य पूज्य प्रिय पिता आपने,
कितना कष्ट उठाया होगा,
मेरा चंचल नटखट बचपन,
कितना दुख पहुंचाया होगा।
मेरे स्नेहिल सपनों के हित,
निज का सुख ठुकराया।
जिसने हाथ पकड़ कर पग-पग,
चलना मुझे सिखाया।2।
रखना सिर पर हाथ सदा निज,
स्नेहाशीष मुझे देना,
कहीं कदम न भटकें मेरे,
मुझको राह दिखा देना।
सदा रहूॅगा ऋणी आपका,
संस्कार वह पाया।
जिसने हाथ पकड़ कर पग-पग,
चलना मुझे सिखाया।3।
रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
रायबरेली (उप्र) 229010
9415955693,