यह पूछ रहा मन मेरा /हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

यह पूछ रहा मन मेरा

तुम जाओगी!कब आओगी?
यह पूछ रहा मन मेरा,
यादों की सौगात सहेजे,
पुलक थिरकता तन मेरा।टेक।

मनहर बातें सॉझ सुहानी,
मीरा जैसी तुम दीवानी,
बूॅद-बूॅद रस अधर टपकता-
छलके कंचन तेरी जवानी।
आकण्ठ बॉह भर कर प्रियवर,
ले लेना चुम्बन तेरा।
तुम जाओगी! कब आओगी?
यह पूछ रहा मन मेरा।1।

तुमने साथ निभाया होता,
मन को धीर बॅधाया होता,
ऋतु का नहीं भरोसा कोई,
नेह मेह बन छाया होता।
नहीं नेह की बगिया उजड़े,
प्रिय चाह रहा मन मेरा।
तुम जाओगी!कब आओगी?
प्रिय पूछ रहा मन मेरा।2।

अम्बर में कलरव खग करते,
नील गगन से बातें करते,
तेरी सुधि में खोया-खोया-
मन की बातें किससे करते।
आदर्शों की धूप-छॉव में-
रहा तड़पता मन मेरा।
तुम जाओगी! कब आओगी?
यह पूछ रहा मन मेरा।3।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’
रायबरेली (उप्र)229010
9415955693

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