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Hindi kavita | Hindi Poems | Poetry | आशा शैली

Hindi kavita | Hindi Poems | Poetry | आशा शैली

1

किस खोज में हैं और ये क्या ढूंढ रहे हैं
जो हम में है उसका ही पता ढूंढ रहे हैं

हम अपने ही हाथों से बुरा अपना करे हैं
रातों के अन्धेरे में जिया ढूंढ रहे हैं

जो लूट के लाये हैं खुशी आज भी खुश हैं
अहबाबे शहर कौन लुटा ढूंढ रहे हैं

गर्दिश में है कश्ती के है माझी की ये साज़िश
पतवार लिए किस की ख़ता ढूंढ रहे हैं

थोड़ी सी ख़लिश और बढ़ी आज जो दिल में
शैली ये हुआ कौन जुदा ढूंढ रहे हैं

2
उसको यूँ उलझनों ने घेरा था
दिल न तेरा था और न मेरा था

झूठ को बल दिया हवाओं ने
सच से भी दूर अब सवेरा था

एक संसार मुझको मिल जाता
क्या करें दूर उसका डेरा था

वो गली से मेरी ही गुज़रे है
हैफ घर में मेरे अंधेरा था

उसकी आहट कहाँ हमें मिलती
हाय शातिर बहुत लुटेरा था

नाचते सब रहे हैं संग उसके
बीन छेड़े कोई सपेरा था

3
मेरी दुनिया में किसी रोज़ अगर तू आए
हरेक साँस से फिर प्यार की खुशबू आये।

मुझको कहनी है कहानी भी नई दुनिया की
कहूँ तो तब जो कहीं तू ही रूबरू आये।

बस एक नाम तेरा और जुस्तजू तेरी
हवा पुकार उठे तुझको चार-सू आए।

हमारी राह में कितने हैं मरहले मुश्किल
तभी मिलेंगे यहाँ अब के अगर तू आए।

नशे में अब तो जो बाकी है वो गुजारेंगे
तुम्हारे नाम प्याला भी और सुबू आये।।
4
मसले को बड़े प्यार से सुलझाना चाहिए
हाँ, चाहतों को दिल भी तो दीवाना चाहिए

सजदे कुबूल होंगे एक दिन यकीन है
उसकी गली में हमको आना-जाना चाहिए

आँखों में अश्क यूँ ही मियां आ नहीं जाते
पुरदर्द कोईई सामने अफसाना चाहिए

हसरत में, तमन्ना में, जुस्तजू में आपकी
हम सा ही काई होश से बेगाना चाहिए

जब तक जियेंगे आपकी चाहत में जियेंगे
मरने के लिए कोई तो बहाना चाहिए

कुछ रोज़ इंतजार अभी और कीजिए
दिल की तड़प को खूब आज़माना चाहिए

उस पार मुन्तजिर है हमारा कोई शैली
हमको नदी में अब तो उतर जाना चाहिए

5

बात महफिल में जब चली दिल की
खिल गई बंद हर कली दिल की

उसकी बातें सहर हो या शब हो
मेरे होठों पे तिश्नगी दिल की

रात दिन वो फरेब देता है
और दीवानगी बढ़ी दिल की।

उसके सजदे में दिल झुका जब भी
एक उम्मीद फिर जगी दिल की।

हाथ से दामने सजन न छुटा
छुट गई हैफ बंदगी दिल की।

काश उस को कभी समझ आता
हाय क्या चीज़ है लगी दिल की

मैं जो सजदे में हूँ तेरे या रब
बढ़ गई और बे-खुदी दिल की।े

6

आँख में नूर बन उतरती है
ज़िन्दगी जब कभी संवरती है

मैंने माना तेरी मुहब्बत ही
मेरी साँसों में गीत भरती है

उसकी बेवक्त की जुदाई से
रात की तीरगी भी डरती है

हम तो वो हैं कि जिसको छूने से
निक़हते गुल यहाँ बिखरती है

तुझको मुजरिम करार देने से
मेरी दानाई भी मुकरती है

वो तुझे देख कर सरे महफ़िल
आँख कब और पर ठहरती है

मिल ही जाती है हमको बादे सबा
तेरी गलियों से जब गुज़रती है

7 .

जिन्दगी क्या इस कदर दुश्वार होनी चाहिए
सिर पर लटकी हर घड़ी तलवार होनी चाहिए

रेजगारों में भटकना है जो मजबूरी तो फिर
दो घड़ी साये को इक दीवार होनी चाहिए

कौन करता बात मेरी कामयाबी की यहाँ
कामयाबी शोहरते अखबार होनी चाहिए

ढब से मिलना बैठना ही है मुहब्बत का उसूल
बात कोई काम की सरकार होनी चाहिए

जीत हो या हार जायें आ गये मैदान में
जो भी हो बाज़ी मगर दमदार होनी चाहिए

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