समीक्षा दिवस विशेष – “सुनहरी भोर की ओर / डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी 

समीक्षा दिवस विशेष – “सुनहरी भोर की ओर / डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी 

पुस्तक समीक्षा

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सुनहरी भोर की ओर

गीतों की किताब “सुनहरी भोर की ओर “

आज समीक्षा दिवस है। सामने डेढ़ सौ से ऊपर पुस्तकें पढ़ी हुई हैं। किस पर समीक्षा लिखें?
मेरी दृष्टि डॉ. रसिक किशोर सिंह ‘नीरज’ की गीतों की किताब “सुनहरी भोर की ओर “ पर पड़ी। बांदा के निवासी रायबरेली में जिलाधिकारी कार्यालय कल्याण निगम में सेवारत किंतु साहित्य में समर्पित। व्यक्तित्व सामान्य है, किंतु रचनाएं समाज की स्थितियों परिस्थितियों विभीषिकाओं और संघर्षों की गाथा करती हुई हैं ।
मां सरस्वती की वंदना “नव गति नव लय ताल तुम्ही हो” , तो दूसरी ओर बोलते पत्थर , संस्कृति दम तोड़ती यहां ,कनेर, प्रकृति , पीड़ायें सहना अच्छा है, दिनमान की तरह, फितरत किसे नहीं पता, खुल गए सब राज ,बरखा रानी आओ ना, और अनेक प्रकार की त्रिपदियों से भरी पड़ी है, पुस्तक।
जहां सामाजिक विसंगतियों का चित्रण है। वहां ही वयक्तिक विशेषताओं पर भी दृष्टि डालने का प्रयास किया गया है ।समाज के विकास का रेखांकन तो वयक्तिक पतन की और भी संकेत है। कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय है, हृदय ग्राह्य है।


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डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी
9450186712

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