सिकंदर  महान और राख / सीताराम चौहान पथिक

सिकंदर  महान और राख / सीताराम चौहान पथिक

संगीत  – रूपक

सिकंदर  महान और राख ।

sikandar-mahaan-aur-raakh

एक सुनसान जगह पर उड़ती हुई राख की ढेरी, जिसके निकट से कवि गुजरता है और उसे देख कर पूछता है –
कविः
राख की ढेरी, बता तू कौन है ॽ
शांत  है गम्भीर है और मौन है
क्या है तेरी दास्तां कुछ तो बता ,
इतिहास की तू पॄष्टभूमि, कौन है ॽ

सहसा राख की ढेरी में से एक कण- समूह ऊपर उठता है और कवि के प्रश्न का उत्तर इन शब्दों में व्यक्त करता है –

राख का मैं तुच्छ कण बिखरा हुआ ,
मैं पवन के वेग से छितरा हुआ ,
कौन जाने कौनसे क्षण किस तरफ ,
हवा में उड़ जाऊं मैं बहका हुआ बिखरा हुआ ।

राख का मैं तुच्छ कण गम्भीर हूं ,
वक्त का मारा सिकंदर  वीर हूं,
मैं विजेता- विश्व इक तूफान था ,
आज धूली में सना तूणीर हूं ।
अपनी शक्ति पर मुझे अभिमान था ,
मकदूनिया-यूनान मेरी शान था ।
गुरु अरस्तु के सफल निर्देश से ,
हर मुसीबत जीतना आसान था ।
मैं उन्हीं के आत्म-बल से
विश्व को अपने हुनर से ,
विजित करना चाहता था
अपने पौरुष बाहुबल से ।

यूनान से निकला था जग को जीतने ,
मैं सिकंदर  प्रबल आँधी  थरथराते गीत ने ,
दहला दिए थे देश- -लेकिन मित्रता ,
उत्तर जो वीरोचित दिया पंजाब  के – पुरु वीर ने ।।
मैंने गद-गद हो उसे लौटा दिया उसका प्रदेश ।
और वापिस लौटना था अब मुझे यूनान देश ।
लौटने पर भी मुझे भूली नहीं पुरु – दोस्ती
मैं विजेता विश्व भारत- मित्र बन लौटा स्वदेश ।।

देख कवि, मैं था सिकन्दर इक महान् ,
एक आँधी  एक तूफां और
शंहशाहों  की शान ।
आज हूं मैं राख का इक तुच्छ कण ,
अब नहीं मालूम, उड़ कर जाऊंगा कैसे जहां ॽ
जीते हुए वह देश- राजा हैं कहां ॽ
राख में छितरे पड़े हैं, यहां – वहां ।

मैं भी नश्वर तू भी नश्वर ,
अंत मेरी  ही तरह  ,
कण राख का होगा यहां ।।
एक ढेरी में न जाने कितने लोग ,
कितने सपने कितनी आशा कितने योग ,
सो रहे हैं- महत्वाकांक्षी नॄप सभी ,
राख ही अंजाम  है- पृथ्वी के सारे भोग ।।
तभी अचानक एक झोंका पवन का गुजरा वहां ,
उस सिकंदर  राख- कण को ले गया जाने कहां – – –
बात भी पूरी न कर पाया
विजेता विश्व का ,
कुदरत के हाथों का खिलौना
उड़ गया जाने कहां ॽ
कवि सिकंदर  के राख-कणो को हवा में अदॄष्य होते हुए देखता रहता है और भावुक हो जाता है। एक ऐसा इतिहास- पुरुष, एक ऐसा विलक्षण व्यक्तित्व जो मानव को जीवन के उत्थान-पतन की प्रेरणात्मक गाथा सुना रहा था – – अब न जाने कितनी शताब्दियों तक मौन रहेगा — ।

नमन सिकंदर  वीर, तुम्हारा जीवन -दर्शन ,
प्रेरित होंगे आज अहंकारी , धन- लोभी, देह – प्रदर्शन ।
दॄष्यमान है जो इस जग में ,
है अंतिम  नश्वरता ,
अमर नहीं है कोई पथिक ,
है यही तत्व जीवन-दर्शन।

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सीताराम चौहान पथिक

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