Jogin Urmila/सीताराम चौहान पथिक

जोगिन ऊर्मिला ।

(Jogin Urmila)


मैं कैसे कहती — आर्य ,
मुझे    संग     ले   लो ।
अपनी  पीड़ाएं – क्लेश ,
मुझे   तुम      दे    दो ।

तुम     भ्रातॄ – प्रेम        में ,
दासी को पग – बाधा समझें,
अब  मेरा   अधिकार – आर्य ,
तुम      मुझको      दे      दो ।

कैसे    बीते   यह       वर्ष ,
आर्य , तुम यह मत पूछो ।
जोगिन    मैं     बन    गई ,
कण्ठ– माला  से    पूछो ।

चौदह वर्षों का एक – एक ,
दिन        कैसे         बीता ।
कुमुद    बनी        कंकाल  ,
विगत   वर्षो   से    पूछो ।

वल्कल धारण   किए ,
तजे रेशम पट  गहने ।
तुम वन- वासी  दासी ,
कैसे    गहने     पहने ।

मन्दिर में भू – शयन ,
रही निर्जल उपवासी ।
गहन  साधना   लीन ,
लता जो लगती ढहने ।

तुम्हें शक्ति जब लगी ,
थरथराई थी  लौ  तब ।
प्रिय पर  संकट     जान ,
किया दृढ़ निश्चय था तब ।

मां      के     आगे   रोई ,
पाति-व्रत धर्म दांव पर ।
जगदम्बा   की    कॄपा — ,
पवन सुत रक्षक थे तब ।

भ्रातॄ – प्रेम के अग्र – दूत ,
उर्मिल      के        स्वामी ।
बनो    राम   के       भक्त ,
मेरे मन – मन्दिर स्वामी ।

हुई      साधना        सफल ,
अवध  तुम सकुशल लौटे ।
घर-घर     जलते       दीप ,
आरती अति    अभिरामी ।

उर्मिल   को    तुम    मिले ,
प्रथम   पूजा    थी    मैरी ।
अब       जीवन    परिपूर्ण ,
अवध की   छांह      घनेरी ।

नीरस बगिया महकेगी ,
अब   तुमको   पा     कर ।
पथिक-अयोघ्या हुई समॄद्ध ,
छंट         गई            अंधेरी ।


Jogin- Urmila
सीताराम चौहान पथिक

आपको Jogin Urmila/सीताराम चौहान पथिक की हिन्दी  कविता कैसी लगी अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य बतायें , पसंद आये तो समाजिक मंचो पर शेयर करे इससे रचनाकार का उत्साह बढ़ता है।हिंदीरचनाकर पर अपनी रचना भेजने के लिए व्हाट्सएप्प नंबर 91 94540 02444, 9621313609 संपर्क कर कर सकते है। ईमेल के द्वारा रचना भेजने के लिए  help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|

अन्य रचना पढ़े :

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *