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Suicide Poem in Hindi : आत्महत्या के विरुद्ध कविता

Suicide Poem in Hindi : आत्महत्या के विरुद्ध कविता / वैशाली चंद्रा

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में निराशा या अवसाद के क्षण कभी-कभी आते ही हैं जब जीना दूभर लगता है लेकिन यही जीवन संघर्ष है! परंतु कुछ लोग धैर्य का दामन छोड़कर अनुचित कदम उठा लेते हैं और अपने जीवन का अंत कर लेते हैं किंतु वे नहीं जानते कि वे अपने जीवन के साथ-साथ अपने परिवार के लोगों के जीवन को भी खत्म कर देते हैं।

आत्महत्या क्या सिर्फ आत्महत्या होती है?


आत्महत्या करने वाले
सिर्फ अपना जीवन खत्म नहीं करते
वे खत्म कर देते हैं अपने साथ-साथ
अपना पूरा परिवार !
पीछे जो छूट जाते हैं,
वे जीवित तो होते हैं
पर जीवन नहीं होता।
वे हँसते तो हैं मौके-बेमौके
पर हँसी खोखली होती है – झूठी !

आत्महत्या करने वाले
सिर्फ अपने जीवन का अंत नहीं करते
वे अंत कर देते हैं अपने साथ-साथ
परिवार के सदस्यों का भी
बुजुर्गों की उम्मीदों का
युवाओं के जोश का
और बच्चों की मासूमियत का।
वे अंत कर देते हैं,
तीज-पर्व,त्यौहार-काज के उल्लास का
जो आगे मनाए तो जाएंगे पर – निरुत्साह !
पता नहीं कौन सा वह
कमजोर क्षण होता होगा?
जिसमें निर्णय लेते हैं वे
ईश्वर के अमूल्य उपहार के अनादर का!

पलायनवादी होते हैं –
आत्महत्या करने वाले
और अपने परिवार को भी
सिखा जाते हैं पलायन करना –
समाज की तिरछी निगाहों से,
चुभते सवालों से –
जो सीधे-सीधे तो नहीं पूछे जाते
पर परिवार को पीठ पर चिपके महसूस होते हैं – निरंतर।
सवाल- जो देते हैं परिवार को दर्द
– अंतहीन !
सवाल – जिनका जवाब परिवार के पास नहीं होता कि ‘क्यों’ ‘किसलिए’?
पर आश्चर्य है कि उन सवालों के जवाब समाज को पता होते हैं !

आत्महत्या करने वाले
काश् उस आत्महंता क्षणों में
आकलन कर पाते
अपने परिवार की आगामी पीड़ा का
तो शायद कभी न करते
वे अपने साथ-साथ
अपने परिवार की हत्या !!!


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वैशाली चंद्रा

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