माँ की याद में कविता – माँ तुमको अलविदा ना कह पाऊँगी | हिंदी कविता माँ के लिए
माँ की याद में कविता – माँ तुमको अलविदा ना कह पाऊँगी | हिंदी कविता माँ के लिए
महामारी कोरोना वायरस के कारण हिंदी साहित्यकार डॉ. वैशाली चंद्रा के द्वारा अपनी माँ को समर्पित कविता माँ तुमको अलविदा ना कह पाऊँगी सभी पाठको के सामने प्रस्तुत है , क्रूर कोरोना ने मेरी माँ को जोकि बिल्कुल स्वस्थ थीं, मात्र छ: दिन में ऑक्सीजन की कमी और मेङिकल अव्यवस्थाओं के चलते हमसे छीन लिया।मात्र 64वर्ष की आयु में वह मुझे अकेला कर गई पर मेरा मन अभी भी यह कड़वा सच स्वीकारना नहीं चाहता, जिसकी वज़ह यह है –
माँ तुमको अलविदा ना कह पाऊँगी
माँ तुमको अलविदा ना कह पाऊँगी
तुम नहीं हो यह मान लिया अगर
तो जी नहीं पाऊँगी…!
अभी तो बनी थी ‘मम्मी’ से ‘बेस्ट फ्रेंड’ तुम मेरी
अल्हड़ उम्र में छुपाती थी नादानी में बातें तुमसे
पर अब अधेड़ावस्था में तुम्हीं थी सखी मेरी
तुम्हीं थी जो बिना अधीर हुए सुनती थी गाथा मेरी
तुमसे कह-सुनकर मिट जाती थी हर
व्यथा मेरी
बताओ भला, अब किसको छोटी-छोटी बातें बतलाऊँगी!
नहीं मम्मी,तुमको अलविदा
नहीं कह पाऊँगी !!
दो बच्चों की माँ मैं,पर तुम्हारी तो बच्ची थी
बड़े हक़ से तुमसे अपनी फरमाईश बताती थी
घर आऊँगी जब तो अपने हाथ का
ये खिलाना,वो बनाना
और बिन बताए भी तो तुम मेरी
पसेद जानती थी
खिलाती थी गर्म-गर्म और साथ ले जाने को भी बाँध देती थी
ससुराल में सबकी पसंद का खिलाते-बनाते
बेटियाँ अपनी पसंद भूल जाती हैं,
यह तुम जानती थी
बोलो ना,तेरे हाथ का वह जादू
कहाँ पाऊँगी!
हाँ माँ, तुमको अलविदा नहीं कह पाऊँगी!!
तूने माँ सिर्फ मुझमें खूबियाँ देखीं
बाकियों ने सिर्फ कमियाँ
तेरे लिए माँ तेरी बिटिया बड़ी गुणी है,
पढ़ने-लिखने,खाने-पकाने सबमें अव्वल
पर दूसरों की नज़र में मामूली हूँ
तेरी नज़र में बेटी तेरी स्मार्ट है
तो औरों के लिए स्वभाव की तेज है
तेरे जैसी ममता और प्यार भरी नज़र
और कहाँ पाऊँगी?
ना माँ ना, तुमको अलविदा नहीं कह पाऊँगी !
तुम हो माँ यहीं पास मेरे,
रखे हो सिर पर हाथ मेरे,
बस यही सोचकर,
जीवनसागर पार कर जाऊँगी….
माँ तुमको अलविदा ना कह पाऊँगी!!
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